
हार्ट डिजीज़ का पता कैसे लगाया जाता है
जानिए अपने दिल की सेहत की जाँच के ज़रूरी तरीके
नियमित रूप से कार्डियोलॉजिस्ट से जांच कराना
- नियमित रूप से कार्डियोलॉजिस्ट से जांच कराना दिल की बीमारी को समय पर पकड़ने में मदद करता है।
मेडिकल हिस्ट्री
- मेडिकल हिस्ट्री लेना पहला कदम है, जहाँ डॉक्टर आपसे दवाओं, परिवार में हार्ट डिजीज़ के इतिहास, सीने में दर्द या सांस की तकलीफ़ जैसे लक्षणों के बारे में पूछते हैं।
फिज़िकल एग्ज़ाम
- फिज़िकल एग्ज़ाम में शरीर की सूजन, कमजोरी, हार्टबीट और ब्लड प्रेशर की जाँच की जाती है।
ब्लड टेस्ट
- ब्लड टेस्ट के ज़रिए ग्लूकोज़, कैल्शियम, कोलेस्ट्रॉल, ट्रोपोनिन और अन्य हार्मोन का स्तर जांचा जाता है।
चेस्ट एक्स-रे
- चेस्ट एक्स-रे से दिल का आकार, आकार-प्रकार और किसी तरल के जमाव का पता चलता है।
ईसीजी
- ईसीजी दिल की धड़कन और उसकी इलेक्ट्रिकल गतिविधि को मापता है, इससे हार्ट अटैक और रिदम की गड़बड़ियाँ पता चलती हैं।
इकोकार्डियोग्राम
- इकोकार्डियोग्राम अल्ट्रासाउंड के ज़रिए दिल की मांसपेशी, वॉल्व और ब्लड पंपिंग की स्थिति दिखाता है।
सीटी स्कैन
- सीटी स्कैन से दिल और धमनियों की अंदरूनी तस्वीर मिलती है और कैल्शियम जमाव का पता चलता है।
एमआरआई
- एमआरआई दिल की संरचना, वॉल्व और रक्त प्रवाह की विस्तृत जाँच करता है।
कार्डिएक कैथेटराइजेशन या एंजियोग्राम
- कार्डिएक कैथेटराइजेशन या एंजियोग्राम में विशेष डाई और पतली ट्यूब के ज़रिए दिल की धमनियों में ब्लड फ्लो देखा जाता है।
स्ट्रेस टेस्ट
- स्ट्रेस टेस्ट में व्यायाम या दवा से दिल की क्षमता और प्रतिक्रिया की जाँच होती है।
जेनेटिक टेस्टिंग
- जेनेटिक टेस्टिंग से पता चलता है कि परिवार से कोई हार्ट कंडीशन मिली है या नहीं।
निष्कर्ष
- नियमित स्क्रीनिंग और समय पर टेस्ट कराना दिल की बीमारी की रोकथाम और जल्दी इलाज के लिए बेहद ज़रूरी है। जितनी जल्दी हार्ट डिजीज़ का पता चलता है, उतनी जल्दी इलाज शुरू कर आप लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।